Joyful words hindi sahitya vyangya kahnai
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Joyful words व्यंग्य का आनंद…
हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की एक अलग पहचान है। हरिशंकर परसाईजी हिंदी व्यंग्य साहित्य में एक सिंहासन पर विराजित विभूति है। उसके व्यंग्य आज भी प्रस्तुत है चाहे वो किसी भी विषय पर क्यों न हों। आज उनके दो व्यंग्य गद्यखंड और एक आनंद ठाकर की व्यंग्य लघुकथा प्रस्तुत है, पढ़िए और पढ़िए….
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Joyful ठंड में नहाना…
मैने ऐसे लोग देखे हैं जो केवल इस कारण आकड़े फिरते हैं की वे रोज़ दो बार नहाते हैं । इसे वो बड़ी उपलब्धि मानते हैं और इससे जीवन की सार्थकता का अनुभव करते हैं । बड़े गर्व से कहते हैं – ‘भैया, कोई भी मौसम हो, हम तो दो बार नहाते हैं । और ठंडे पानी से ।’ स्नान के अनुभव को वे बड़े महत्व से सुनाते हैं – ‘बस, पहला लोटा ऊडेलो, तभी ज़रा ठंड लगती है । इसके बाद ठंड लगती ही नहीं । गर्मी लगती है । फिर दिन भर बड़ा अच्छा लगता है ।’ मैं नहीं जानता, अपने शरीर की सारी उष्णता ठंडे पानी से लड़ने के लिए रोज़ बाहर निकालना कहाँ तक अच्छा है । इस उष्णता से कोई उपयोगी काम किया जा सकता है ।
– हरिशंकर परसाई
( शायद ही कोई होगा जो हिंदी प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार हरिशंकर परसाई को नहीं जानता होगा। )
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Joyful प्रॉपर चेनल
एक अध्यापक था। वह सरकारी नौकरी में था ।मास्टर की पत्नी बीमार थी । अस्पताल में थी। तभी उसके तबादले का ऑर्डर हो गया। शिक्षा विभाग के बड़े साहब उसी मुहल्ले में रहते थे। उसका बंगला मास्टर के घर से दिखता था। वह उनजे बंगले के सामने से निकलता तो उन्हें सादर ‘ नमस्ते’ कर लेता। मास्टर ने सोचा, साहब से कहूँ तो वे फिलहाल मेरा तबादला रोक देंगे
वह साहब के घर गया । बरामदे में बड़े साहब ने पूछा – क्यों ? क्या बात है ?
– साहब एक प्राथना है।
– बोलो
– मेरी पत्नी अस्पताल में भर्ती है। वह बहुत बीमार है।
– तो ?
– मेरा तबादले का ऑर्डर हो गया है।
– तो ?
– सर, कृपा कर फिलहाल मेरा तबादला कैंसिल कर दे।
साहब नाराज हो हुए। बोले – तुम्हे अनुशासन के नियम मालूम हैं ? तुम सीधे मुझसे मिलने क्यों आ गए ? तुम्हे आवेदन करना चाहिए थ्रू प्रॉपर चैनल । तुम्हे अपने हैडमास्टर की लिखित अनुमति के साथ मुझसे मिलना चाहिए। जाओ, तबादला कैंसिल नहीं होगा। तुम्हें अनुशासन भंग करने के लिये डाँट भी पड़ेगी।
मास्टर को डाँट पड़ी। आइंदा साहब से सीधे नहीं मिलने की चेतावनी मिली। मास्टर ने दो महीने की छुट्टी ले ली।
एक शाम साहब के घर में आग लग गयी। आसपास के लोग आग बुझा रहे थे।
मास्टर बरामदे में खड़े हुए देख रहे थे। आग बुझ गयी। अधिक नुकसान नहीं हुआ।
दूसरे दिन मास्टर साहब निकले तो साहब फाटक पर खड़े थे। साहब में कहा – मास्टर साहब, कल शाम को मेरे घर में आग लगी थू तो तुम खड़े खड़े देखते रहे। बुझाने नहीं आये।
मास्टर ने नम्रता से कहा – सर, मैं मजबूर था। हेडमास्टर साहब बाहर गए हैं। उनकी लिखित अनुमति के बिना कैसे आता ? आपकी आग बुझाने के लिये थ्रू प्रॉपर चेनल आना चाहिए !
– हरिशंकर परसाई
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Joyful आज का अहेवाल….
( एक व्यंग्य लघुकथा )
हम सब लोग आज निकले थे जुलूस ले के। रघु बोल रहा था: प्लास्टिक हटाओ, देश बचाओ। देवकन्या गा रही थी: पर्यावरण से प्यार तो प्लास्टिक से करो इनकार… बहुत बढ़िया जिंगल थी। सब बड़े चाव से सुन रहे थे , जुलूस मुख्य मार्ग से होता हुआ गली में मुड़ा ही कि बारिश होने लगी, चंद पल में तो जोरों की बारिश आने लगी। जुलूस बिखर गया। जहां जगह मिली सब दुकानों की छत के नीचे पनाह लेने लगे। हमारे जितेंद्र ने हाथ में बोर्ड लिया था वो शर पे ढक लिया और दुकानदार से प्लास्टिक बैग मांगा और अपना आई फोन उसमें रख लिया। देवकन्या ने अपने पल्लू को शिर पर ढक के कल ही खरीदी हुई साड़ी की बैग में अपना पर्स रख लिया। बस थोड़ी देर में बारिश रुकी कि हमारे लीडर ने आज का काम पूरा घोषित किया और सब को कोल्ड्रिंक्स पिलाई। हमारे प्रोफेसर साहब ने रघु को कहा मुझे दो डिस्पोजल देना मै और राजी दोनों आधा आधा पिएंगे। और हम सब अपने अपने घर गए।
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