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Poem : कुछ कविताएं – चांद का रिपोर्टिंग

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Poem Hindi Kavita kavy nazam gazal love chand ka reporting 

Poem Hindi Kavita kavy nazam gazal love chand ka reporting 
Poem Hindi Kavita kavy nazam gazal love chand ka reporting

Poem : कुछ कविताएं – चांद का रिपोर्टिंग

हमारी ये वेब साइट में कविताओं का दौर शुरू करे तो शीर्षक क्या रखे? ये मशक्कत में मन ने कल्पना की कि अगर चांद – चंद्र – रिपोर्टिंग करता तो क्या करता… ये जगत को देख कविताएं तो बनता! और शीर्षक मिल गया।

कविताएं हृदय का संगीत है जो भाव के सुर ले के शब्द का आधार बन जाती है और लोगों को सुकून व आनंद दे पाती है। कविता दिल के मिनरल्स है।  इसलिए आज कुछ कविताएं…

 

Poem अनिश्चितता के वाइरस

यत्न में व्यस्त: वापस लाने
डिलीटेड फोटो।
व्यर्थ है, पता है;
किसी रोज छूटने से
डिलीट की थी सारी फोटो।
वक्त की बहती नदी के किनारे
हमने देखा एक अर्से बाद:
मोगरे सा चहेरा, बादें सबा सी मुस्कान!
वो सिर्फ तस्वीरें ना थी,
थी यादों का इतिहास!
मै फाइंड कर रहा हूं:
ग्रीष्म की कड़ी धूप,
समंदर किनारे हाथ थामे थे!
किसी दिन वो साड़ी पहने
गर्दन एक आौर झुकाए
अपनी निजी स्टाईल में,
ये सब तस्वीरें
अब नहीं रही हार्डडिस्क में
पर
चल पड़ा है: मेरे अंदर:
मेमरी रिकवर प्रोग्राम
जो तस्वीर के साथ उस वक्त के स्मरण
मुझे हैंग कर देते है।
अब शटडाऊं की प्रतीक्षा में,
क्यूंकि मै बीच में उसकी यादे तक
छोड़ना नहीं चाहता!
जब कि
वक्त और मन दोनों
अनिश्चितता के वाइरस से घिरे है!

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– आनन्द ठाकर

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Poem  एक अनकहे संवाद के लिए!

तुम्हें कुछ कहना है:

चंद मिनट
चाहता हूं तुम आओ
समंदर किनारे।
थोड़ी दूरी बनाई रख्खेंगे!
फिर देखता रहूंगा समंदर को
समंदर मेरी खामोशी का दोस्त!

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मुझे पता है, तुम:
किसी समंदर में घुल गई नदी हो,
अलग से नहीं आ सकती,
फिर भी
आसक्त, उदास या आकर्षित नहीं हूं तुम से
जरूरत भी नहीं है;
क्योंकि
मुझे यक़ीन है
समंदर की लहरे तुम्हें बताएंगी
तुम्हारे बगैर भी यहां तुम से
कितनी बार बातें हुई है!

बस, किनारे पड़े ये छिप
उन्हीं बातों की छाब लिए
तुम्हारा स्वागत करेंगे!
एक अनकहे संवाद के लिए!

– आनन्द ठाकर

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Poem तारों की रोशनी का मुंह बंद हुआ है!

सुर्ख़ियों में अब सूरज निकलता है!
चांद का रिपोर्टिंग अच्छा हुआ है।

जन, जीव, जंगल सब की सुनी,
धरती के आंसुओं का क्या हुआ है?

है अगर लोकशाही आसमां में तो
तारों की रोशनी का मुंह बंद हुआ है!

तालाब को नामशेष करने से पहले,
जलचरों की राय का एडिटिंग हुआ है!

बचा है आखरी राशन शब्द का तो
कविता के चैनलों का पी.आर. हुआ है।

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Poem वो उस वक्त मिली थी मुझे…

 

वहां से गुजरता हूं तो
रुक जाता हूं
थम जाती है धड़कने आज भी
मिलने पर
क्यूंकि वो उस वक्त मिली थी मुझे
जब मैं
भोगे हुए सपनों से बिछड़ा था
और
नए सपनों की मुंदी आंखे खुल रही थी!
मेरे हृदय में खिले
तितलियों के पंख से संधिकाल में
वो उस वक्त मिली थी मुझे
तब मेरे लिए वो हर नई सुबह सी थी
फर्क नहीं पड़ता था।
आज वहां से गुजरता हूं तो
गत जन्म कि बात लगती है!
बस, अब नए सवेरे की प्रतीक्षा लिए
उसके मुस्कान की याद
जब नई कोंपलें फिर से जगी है
वो उस वक्त मिली थी मुझे

– आनन्द ठाकर

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Poem फिर से मेरी कहानियां रूठ जाएंगी!

 

अब नहीं,
तुम फिर से मुकर जाओगी,
फिर से मेरे नजदीक आने से
तेरे अंदर रहा नैतिक प्राणी जग जायेगा!
तुम्हें पता नही है
पर
फिर से मेरी कहानियां रूठ जाएंगी!

कुछ तकलीफें
समंदर की नमकीन लहरें
और ये पवन के झोंके?
भूल गई?
कल की बात लग रही है!
आज भी समंदर हम दोनों की प्रतिक्षा करता होगा
कितनी शामें गिरवी रखूं?
और हम किसी दूर चांद सी रात टटोलते है
ख़्वाब है
की एक दिन
तुम्हें यहां ले आयेंगे।
पता है,
फिर भी, पूछता हूं!
आ पाओगी?
मुस्कुराते हुई जिंदगी के
चंद लम्हों की लहरें छूने!

– आनन्द ठाकर

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Poem मुलायम मुलायम…

मुलायम मुलायम महक मखमली सी
चांद के ऊपर दो पंखुरी कमल सी!

उनकी वादियों के पर्वतों को छुआ
नदी के मोड़ पर लहरे बादलों सी!

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सरेआम निगाहें न फेरा करो तुम
आंखों में लाली लगी है मेंहदी सी!

रसना अभी भी तिलमिलाती रही
खुश और खामोश रही जिंदगी सी!

अभी रात पूरी हुए कहां, सुबह में?
दिखी तो दिखी कल सद्यस्नाता सी!

बादल भीगा, भीगी नदी भी सहर
बीन बरसात हालात बादें स़बा सी!

— आनंद ठाकर

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Poem वो विश्व का विश्वास है

वो स्वरूप है, वो शक्ति है,
वो शब्द है, वो अर्थ है।
श्रद्धा से उसके शरण हो तो –
वो विश्व का विश्वास है।।१।।

आ जाए जो वो मस्ती में
तो देव के महादेव है।
नेत्र तीसरा खुले तो –
वो काल के महाकाल है।।२।।

जालंधर को जल में गड़े
लड़े युद्ध में सहस्रबाहु से।
हर सांस उसका नाम ले तो
आंधी के आगे वो खड़े।।३।।

उपमन्यु के उपदेश है
वो वीरभद्र का सामर्थ्य है।
राम के ईश्वर बने तो
कृष्ण के परमार्थ है।।४।।

सारा जगत तो लय में है –
जो वो समाधि लिन हो।
रुद्ररूप में हो खड़े तो –
ब्रह्माण्ड सारा विलीन हो।।५।।

निर्गुण है, निराकार है
गंधर्व के वो गान है।
नटराज हो के नृत्य करे तो
विश्व के विज्ञान है।।६।।

ख्वाहिशों से परे हो के
जो प्रार्थना शिव की करे –
भव्य सी आनंदधारा बहे
खुशियों से दामन वो भरे।।७।।

सागर अविरत अभिषेक करता
यहां पावन गंगेश्वर धाम में।
स्वर, सुर और शब्द के
अर्पण करु बिल्वपत्र मै।।८।।

हर हर महादेव हर हर
हर हर महादेव हर हर….

– आनन्द ठाकर

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यह कविता के कॉपी राईट लेखक के पास आरक्षित है। इस का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से पहले कवि की अनुमति लेना जरूरी है। आप के सहकार के अभिलाषी… और हां ये लिंक अपने स्वजन एवम सज्जन को भेजिएगा जुरूर।

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