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Jawan Or Jailer choices yours
Jawan या Jailer पसंद आपकी
जवान या जेलर ये पसंद शाहरुख और रजनी गारु के बीच नहीं है।
ये पसंद बॉलीवुड और साउथ की फिल्म के बारे में नहीं है।
ये पसंद है विचारों की।
रिलीज़ –
Jawan – जो कि शाहरुख खान की फिल्म है।
Jailer – जो रजनीकान्त की फिल्म है।
नॉर्थ और साउथ दोनों जगह जवान हीट हो रही है।
जेलर साउथ में अच्छी रही, नॉर्थ में ठीकठाक रही अब amazon prime पर आ गई है।
जवान सिनेमा घरों में है अभी।
जेलर नॉर्थ में कस्बों तक थियेटर में आई ही नहीं।
ये बातें हुई रिलीज़ की पर मैं यहां आगे जो कहा की विचारों की नीव और प्रस्तुति की रीत पर दोनों फिल्मों को लेके बात करूंगा।
पिछले दिनों तीन 90’s के हीरो की फिल्में चर्चा में रही: गद्दर, जवान और जेलर।
तीनों में एक बात सामान्य है: बेटे के लिए बाप खेल रहा है, एक्शन कर रहा है।
गद्दर २ Gadar 2 –
यह फिल्म की चर्चा यहां पर प्रस्तुत इसलिए नहीं है, क्योंकि इस में बाप के लिए बेटा और बेटे के लिए बाप पाकिस्तान जाते है। यह फिल्म में इंटरनेशनल इश्यू है। जो मेरे इस लेख की नीव नहीं है।
जवान – Jawan
यह फिल्म में भ्रष्टाचारी नेताओं, सरकारी तंत्र, उद्योगपतियों को दर्शाया है। नायक प्रजा के लिए ब्लैकमैल करके उनसे पैसे ले के प्रजा को वापिस देता है। अंत में काली जो की राइफल में घोटाला कर के सैनिकों – जवान – की जान से खेला है, उनसे लड़ता है और आखिर, नायक बाप बेटे दोनों मिलकर मिशन आगे चलाते है। काली को खत्म करने के लिए। कहानी का अंत नजदीक आने पर बेटा बना नायक दो मिनट की देश की सिस्टम में बदलाव लाने की स्पीच देता है, क्यूंकि आगे उन्होंने सब भ्रष्ट राजनेता के पास से पैसे ले के गरीब लोगों में बांट दिए थे। उनकी वजह बता रहा है और जनता को जागृत होने की एक वॉट की क्या कीमत है वो समझा रहा है।
क्योंकि शायद इस फिल्म के राइटर को लगता होगा कि एक नामी सितारा अगर लोगों को कहेगा तो कुछ बदलाव आ सकता है!
जेलर – Jailer
जेलर एक सटिक बात कहने के लिए लिखा गया एक मॉर्डन ड्रामा है। कहानी सिर्फ़ इतनी है कि टाइगर – मुथुवेल पांडियन – रजनी गारु एक जेलर है, जिसने बड़े बड़े गुनहगारों को अपनी जेल में अपने तरीके से रक्खा है। सब के साथ दोस्ती भी है और उन के नियम में न रहे उनसे जम के दुश्मनी भी है।
मुथुवेल का बेटा अर्जुन पोलिस इंस्पेक्टर है। उसे विलन वर्मा उठा ले जाता है, उसे बचाने के लिए मुथुवेल विलन की सब शर्त पूरी करने का प्रयास करता है, पर सब जानता है कि अपना बेटा ही मिला हुआ है, पैसे की लालच में। बस, यहीं ट्विस्ट है, ये कहानी का।
मुझे राज़ खोलने का कोई मन नहीं यहां, पर मुझे जो कहना है वो कहानी का अंत कहे बिना प्रस्तुत नहीं होगा।
फिर भी बाप सब शर्त पूरी कर के बेटे को कहता है कि तुम पुलिस के सामने सरेंडर करदो। बेटा शरणागति स्वीकारने को तैयार नहीं है, वो अपने जांबाज़ पिता के सामने ही बंदूक ताक देता है, ( सोचो, ये फिल्म के लेखक और दिग्दर्शक की सोच! )
फिर क्या…
पिता हर बार की तरह बेटे को भी पता न चले ऐसे शार्प शूटर रखें थे तो जब रजनी गारू उठ के खड़े होते ही पिता के शूटर की गोली चलती है, बेटा छन्नी हो जाता है। एक जेलर – पिता अपनी संतान के लिए पीछे मुड़ के भी नहीं देखता, क्यू?
वहीं सच्ची कहानी है…
पिता जो कि एक जेलर है, वे समझते है: गुनहगारों, भ्रष्ट व्यक्तियों की मनोस्थिति को, वे समझते है : नीति को। अगर नियम बनाना है तो सब के लिए एक – ऐसा रूढ़िवादी व्यक्ति नहीं है पर ये कहानी का नायक हमे दिखा कर सीखता है की अगर आप सिस्टम को बदलना चाहते हो तो पहले अपनों से, अपने घर से शुरुआत करनी होगी।
बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर ये Should है। पर जरूरत पड़ने पर बाप बेटे का बलिदान भी दे सकता है ये Must होना चाहिए। सिस्टम तभी बदल सकती है। व्यक्तिगत गलतियों के लिए आप अपने संतानों से सख़्त नहीं होंगे तो देश अच्छा बनेगा ये उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि हम और आप और आनेवाली पीढ़ी जो हमारी संतानें हैं, वही तो राष्ट्र हैं।
कला क्या है?
पश्चिम की विदुषी
सुसान के. लेंगर (Susanne K. Langer) – जो की वो एक तत्वज्ञानी थी और भाषा में प्रतीकवाद की समर्थक थी – कहती है: Art is the creation of forms symbolic of human feeling.
अर्थात् मनोभाव के प्रतीकात्मक घाट का सर्जन वो ही कला। यहां पर forms शब्द महत्वपूर्ण लगा इसीलिए ये विभावना बताई।
संस्कृत के काव्यशास्त्र के विद्वान मम्मटाचार्यजी कहते है –
इदमुत्तममतिशयिनि व्यङ्गये वाच्याद्, ध्वनिर्बुधैः कथितः ॥ काव्यप्रकाश ४ ॥
अर्थात् – ये काव्य का ( संस्कृत में काव्य मानी कला ) जब व्यंग्यार्थ जब वच्यार्थ से रमणीय हो, तब उत्तम बनता है।
नाटक हो या सिनेमा उनकी प्रस्तुति क्या है?
संस्कृत नाट्यशास्त्र के महान विभूति भरतमुनि ने अभिनय को संवाद की व्यंजना का मूल आधार भी बताया है। इस बात की पुष्टि उनके निम्नलिखित श्लोक से होती है…
वाचि यत्नस्तु कर्तव्यो नाट्य स्यैषा तनुः स्मृता।
अंगनैपथ्यसत्वानि वाक्यार्थं व्यंजयन्ति हि॥
ये तीनो संदर्भ रखने का कारण…
तीनों के अनुसार बात ये है: प्रस्तुति वह है कि भावक या दर्शक देख कर उनके मन में सिनेमा में कहे बिना – संवाद विहीन – प्रस्तुत की गई हो वह बात शुरू हो। दर्शक सोच में पड़ जाए। उनके मन में कुछ विचारोकी शृंखला जागृत हो। जो कहा गया है वो ही देख के आ जाए वो एक इश्तहार है। सर्जनात्मक कला ये है कि विचारों की भावना जागृत हो उठे। जेलर देख के आपके मन – मस्तिष्क में एक झोंक आयेगा कि अगर में वहां पर होता तो? या तो मेरे आसपास कोई ऐसा नहीं है न?!
ये है; पसंद है विचारों की।
सिनेमा से आप बदलाव चाहते हो? रचनात्मक बदलाव? तो सोसायटी – समाज – को साथ में रख के नीव से जुड़ के सोचना पड़ेगा। फिल्में बड़ी नहीं अच्छी होनी चाहिए। अच्छी फिल्में अगर अच्छी क्यू है? ये सवाल ले के देखेंगे तो मेरे उपरोक्त सब मुद्दे आपके सामने आएंगे।
जवान व जेलर?
दोनों अपनी जगह है, सिर्फ समाज दो विचारों में फैला हुआ है: एक मानता है कि कोई मसीन्हा आयेगा, सब ठीक कर देगा। दूसरा ये सोचता है की विचार पर निर्णय करके कार्य भी मुझे ही करना है। दूसरी तरह के लोग सोसायटी को दिशा देते है: अपने विचारों और आचारों से।
– आनन्द ठाकर
( SAHAJ SAHITY PORTAL)
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